नगाड़ों की धूम के साथ करें भैरव पाठ कष्टों-परेशानियों से मिलेगी मुक्ति
बीकानेर। भय का हरण कर जगत का भरण करने वाले होते हैं भैरवनाथ। उक्त जानकारी देते हुए बीकानेर के जाने-माने ज्योतिर्विद पं. गिरधारी सूरा पुरोहित ने बताया कि इस वर्ष शनिवार 23 नवम्बर 2024 को भैरवाष्टमी मनाई जाएगी। हालांकि भैरव मंदिरों में विगत तीन-चार दिनों से अनुष्ठान प्रारंभ हो गए हैं। पं. सूरा ने बताया कि मार्गशीर्ष में कृष्ण पक्ष की अष्टमी को काल भैरव की पूजा का प्रचलन है। पौराणिक मान्यता के अनुसार शिव के रूधिर से भैरव की उत्पत्ति हुई। बाद में उक्त रूधिर के दो भाग हो गए- पहला बटुक भैरव और दूसरा काल भैरव। इसीलिए वे शिव के गण और पार्वती के अनुचर माने जाते हैं। भैरव को काशी का कोतवाल कहा जाता है। कहते हैं कि काल भैरव ने ब्रह्माजी के उस मस्तक को अपने नाखून से काट दिया जिससे उन्होंने असमर्थता जताई।
तब ब्रह्म हत्या को लेकर हुई आकाशवाणी के तहत ही भगवान काल भैरव काशी में स्थापित हो गए थे। काल भैरव के प्रसिद्ध, प्राचीन और चमत्कारिक मंदिर उज्जैन और काशी में है। बीकानेर में भी कोडमदेसर भैरुजी, सूरदासाणी बगेची भैरुनाथ मंदिर, सियाणा गांव स्थित भैरुनाथ बाबा, तोलियासर गली, लक्ष्मीनाथ घाटी, भुजिया बाजार में रिगतमल भैरुनाथ, जोड़बीड़ भैरुनाथ, मोहता सराय से आगे बद्री भैरुनाथ, गिन्नाणी मोहल्ले में, मोहता चौक स्थित भैरुनाथ मंदिरों में अभिषेक व शृंगार के साथ महोत्सव मनाया जा रहा है। पं. सूरा ने बताया कि काले रंग के कुत्ते को कालभैरव की सवारी माना जाता है। हिंदू मान्यता के अनुसार काले कुत्ते को रोटी खिलाने से कालभैरव प्रसन्न होते हैं और व्यक्ति आकस्मिक मृत्यु के भय से दूर रहता है। वे संतान को लंबी उम्र प्रदान करते है। अगर आप भूत-प्रेत बाधा, तांत्रिक क्रियाओं से परेशान है, तो आप शनिवार या मंगलवार कभी भी अपने घर में भैरव पाठ का नगाड़ों के साथ वाचन कराने से समस्त कष्टों और परेशानियों से मुक्त हो सकते हैं।
ग्रहों के दोष से मुक्ति और कार्य में सफलता दिलाता है भैरव पूजन
काल भैरव का आविर्भाव मार्गशीर्ष कृष्ण अष्टमी को प्रदोष काल में हुआ था। यह भगवान का साहसिक युवा रूप है। उक्त रूप की आराधना से शत्रु से मुक्ति, संकट, कोर्ट-कचहरी के मुकदमों में विजय की प्राप्ति होती है। व्यक्ति में साहस का संचार होता है। सभी तरह के भय से मुक्ति मिलती है। बटुकाख्यस्य देवस्य भैरवस्य महात्मन:। ब्रह्मा विष्णु, महेशाधैर्वन्दित दयानिधे।। अर्थात् ब्रह्मा, विष्णु, महेशादि देवों द्वारा वंदित बटुक नाम से प्रसिद्ध इन भैरव देव की उपासना कल्पवृक्ष के समान फलदायी है। बटुक भैरव भगवान का बाल रूप है। इन्हें आनंद भैरव भी कहते हैं। उक्त सौम्य स्वरूप की आराधना शीघ्र फलदायी है। यह कार्य में सफलता के लिए महत्वपूर्ण है। उक्त आराधना के लिए मंत्र है-
ऊं ह्रीं बटुकाय आपदुद्धारणाया
कुरु कुरु बटुकाय ह्रीं ऊं।।
एकमात्र भैरव की आराधना से ही शनि का प्रकोप शांत हो जाता है। आराधना का दिन रविवार और मंगलवार नियुक्त है। शनि के प्रकोप से बचने के लिए, जन्मकुंडली में अगर आप मंगल ग्रह व राहु केतु के दोषों से परेशान हैं तो भैरव की पूजा करके दोषों का निवारण आसानी से कर सकते है। के उपायों के लिए भी इनका पूजन करना अच्छा माना जाता है। अगर कोई शनि राहु केतु ग्रह से पीडि़त है तो इस दिन भैरवजी का तेल से अभिषेक कर विधि विधान से पूजन करें और भैरवजी के आगे सरसों के तेल के 108 दीपक प्रज्ज्वलित करें।
यूं कहलाए 52 भैरव
पं. गिरधारी सूरा ने बताया कि पुराणों में उल्लेख है कि बाबा भैरुनाथ का चरित्र बहुत ही सौम्य, सात्विक और साहसिक है। श्री लिंगपुराण अध्याय 106 के अनुसार दारुक नामक अनुसार ने जब ब्रह्मा से यह वरदान प्राप्त किया कि मेरी मृत्यु सिर्फ किसी स्त्री से हो तो बाद में उसका वध करने के लिए माता पार्वती का एक रूप देवी काली प्रकट हुई। असुर को भस्म करने के बाद मां काली का क्रोध शांत ही नहीं हो रहा था तब उस क्रोध को शांत करने के लिए शिवजी बीच में आए परंतु शिवजी के 52 टुकड़े हो गए, वही 52 भैरव कहलाए। तब 52 भैरव ने मिलकर भगवती के क्रोध को शांत करने के लिए विभिन्न मुद्राओं में नृत्य किया तब भगवती का क्रोध शांत हो गया। इसके बाद भैरवजी को काशी का आधिपत्य दे दिया तथा भैरव और उनके भक्तों को काल के भय से मुक्त कर दिया तभी से वे भैरव, कालभैरव भी कहलाए।