‘इदं ना मम, इदं राष्ट्राय’ मंत्र से ही बेहतर नागरिक निर्माण : नरसी कुलरिया

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ : कार्यकर्ता विकास वर्ग-प्रथम (सामान्य) प्रशिक्षण सम्पन्न
संघ की दिशा, दृष्टि और विचार स्पष्ट है- ‘व्यक्ति निर्माण और राष्ट्र निर्माण’ : निम्बाराम
नागौर। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ राजस्थान क्षेत्र कार्यकर्ता विकास वर्ग-प्रथम (सामान्य) 20 दिवसीय प्रशिक्षण वर्ग का समापन समारोह शुक्रवार को शारदा बाल निकेतन में आयोजित हुआ। समापन समारोह में निम्बार्क तीर्थ, किशनगढ़ के अनंत श्री विभूषित अखिल भारतीय जगद्गुरु निम्बाकाचार्य पीठाधीश्वर श्री श्यामशरण देवाचार्यजी श्रीजी महाराज का सान्निध्य रहा। श्री वीर तेजाजी मंदिर खरनाल गादीपति भोपाजी श्री दयिावरामजी धोलिया का मुख्य आतिथ्य रहा तथा उद्योगपति एवं समाजसेवी नरसी कुलरिया का विशिष्ट आतिथ्य रहा। समारोह में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के राजस्थान क्षेत्र प्रचारक निंबारामजी का मुख्य वक्ता के रूप में मार्गदर्शन मिला। राजस्थान क्षेत्र प्रचारक व समारोह के मुख्य वक्ता निम्बारामजी ने कहा कि संघ देखने में ही समझ आता है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की दिशा, दृष्टि और विचार स्पष्ट है कि स्वयंसेवकों को हिंदू समाज के हित और सुदृढ़ीकरण के लिए श्रम साधना करना है। हमारे देश का गौरवशाली इतिहास रहा है। महान संत परंपरा ने हमारी आध्यात्मिक धरोहर को संजोकर रखा है। विराट व भव्य महाकुंभ ने इस देश की सामाजिक समरसता और सनातन एकता का दिव्य रूप प्रकट किया। समाज को सबल बनाने से ही राष्ट्र सशक्त बनेगा। हम कितनी भी व्यवस्थाएं क्यों ना खड़ी कर लें यदि समाज दुर्बल है तो राष्ट्र निर्माण में पिछड़ जाएंगे। संघ की शाखा समाज परिवर्तन और राष्ट्र निर्माण की आधारशिला है। नियमित संघ स्थान के अलावा भी गांव गांव, नगर नगर में हमारे स्वयंसेवक व्यक्ति निर्माण और राष्ट्र निर्माण के कार्य में लगे हुए हैं।

समापन समारोह को सम्बोधित करते हुए विशिष्ट अतिथि नरसी कुलरिया ने कहा कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ आज अपने निरंतर व्यक्ति और समाज निर्माण के माध्यम से राष्ट्र निर्माण, और विश्व कल्याण कार्य के महान उद्द्देश्य की प्राप्ति हेतु अपनी अथक यात्रा के 100 वें वर्ष में प्रवेश कर चुका है। आरएसएस एक ऐसा संगठन जिसके नाम में ही इसकी तस्वीर उभर आती है। अर्थात् स्वयं के इच्छित भाव से समूह के साथ मिलजुल कर राष्ट्र हेतु कार्य करने वाला संगठन ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ है। नरसी कुलरिया ने राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त की पंक्तियों का उद्बोधन देते हुए कहा कि – भरा नहीं है जो भावों से, बहती जिसमें रसधार नहीं, हृदय नहीं वो पत्थर है जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं। भामाशाह नरसी कुलरिया ने कहा कि संघ ने अपनी शाखाओं के माध्यम से स्वयंसेवकों में राष्ट्रवाद का भाव जागृत किया है और जीवंत राष्ट्र की अवधारणा की प्रबलता प्रदान की है। विश्व में केवल हमारा ही देश ऐसा है जिसे हम जीवंत राष्ट्र के भाव से देखते और अनुभव करते हैं। भारतमाता के सम्बोधन द्वारा हमने हमारे राष्ट्र के साथ माँ और संतान का संबंध स्थापित किया है। यह संबंध हमारे मन में राष्ट्र के प्रति सम्मान के भाव के साथ-साथ हमारे अंदर कर्तव्यबोध की ज्योति को जलाए रखता है। कुलरिया ने कहा कि संघ अपनी शाखाओं के माध्यम से विश्वभर में सूक्ष्म रूप से व्यक्ति निर्माण का कार्य कर रहा है जो कि व्यापक रूप से राष्ट्र निर्माण में परिणित हो रहा है। संघ हमारे मन में वसुधैव कुटुंबकम का भाव जगाता है, जिसके माध्यम से हम सर्वे भवन्तु सुखिन की प्रार्थना सम्पूर्ण विश्व के कल्याण हेतु करते हैं। उन्होंने कहा- मैं इस मंच से हमारे प्रेरणा स्रोत पूज्य सरसंघचालक डॉक्टर मोहनरावजी भागवत और सरकार्यवाह दत्तात्रेयजी होसबोले का अभिनंदन करता हूँ। कहते हैं की सशक्त व्यक्ति से सशक्त राष्ट्र का निर्माण होता है इसका उदाहरण हम पिछले माह में देख चुके हैं। संघ ने अपने संस्कारों से प्रधानमंत्री नरेन्द्रभाई मोदी के व्यक्तित्व का निर्माण इस प्रकार से किया कि उनके राष्ट्र सेवा के संकल्प के 11 वर्षों के राष्ट्र नेतृत्व के कार्यकाल में हमारा देश विश्व की चौथी बड़ी अर्थव्यवस्था बना है।
आज हमारा भारत विश्व की बड़ी आर्थिक शक्ति के साथ-साथ बड़ी सैन्य शक्ति भी बन चुका है। जिस प्रकार हमारी सेना ने पाकिस्तान को घर में घुस कर सबक सिखाया है, उससे दुश्मन देश ही नहीं पूरे विश्व में भारत की धाक जमी है। नरसी कुलरिया ने युवाओं और कार्यकताओं को सम्बोधित करते हुए कहा कि जीवन के किसी भी क्षेत्र में कार्य करो, लेकिन कभी भी अपने परिवार, समाज और राष्ट्र के प्रति कर्तव्य को मत भूलना। हम यह भी सीखते हैं कि देश हमें देता है सबकुछ, हम भी लो कुछ देना सीखें इस भाव से युक्त हमारा जीवन होना चाहिए। हमारा देश त्याग और तप की भूमि कहलाता है। परिवार, समाज और राष्ट्र के प्रति त्याग का भाव हमारे चरित्र निर्माण का हिस्सा होता है। यहाँ जो भी महापुरुष हुए उन्होंने अपने जीवन में त्याग ही किया है। महर्षि दधीचि ने तो धर्म की रक्षा हेतु अपनी अस्थियों तक दान कर दी थी, महाराणा प्रताप ने मातृभूमि की रक्षा हेतु राजभवन तक त्याग दिया और पन्नाधाय ते स्वामिभक्ति के भाव को अपने बालक चन्दन के बलिदान से जीवित रखा। इसी प्रकार से संघ प्रचारकों का ‘इदं ना मम, इदं राष्ट्राय’ का मंत्र ही हमें बेहतर नागरिक बना सकता है। अंत में इस शिविर में प्रशिक्षितराष्ट्रवाद को समर्पित स्वयंसेवकों को शुभकामनाएं देता हंू