कला-कौशल, मेहनत व सक्रियता की सीख देता है डॉ. राम वंजी सुतार का व्यक्तित्व : जगदीश कुलरिया

पद्मभूषण डॉ. राम वंजी सुतार का शताब्दी सम्मान समारोह आयोजित
दुनिया की सबसे ऊंची प्रतिमा स्टैच्यू ऑफ यूनिटी (182 मीटर ऊंची) एवं 150 से अधिक देशों में लगी मूर्ति के निर्माता हैं पद्मभूषण से सम्मानित शिल्पकार राम सुतार
नई दिल्ली। दिल्ली विश्वविद्यालय दौलतराम महिला महाविद्यालय सभागार में 29 मार्च, शनिवार को पद्मभूषण डॉ. रामवंजी सुतार का शताब्दी सम्मान समारोह आयोजित किया गया। शताब्दी सम्मान समारोह आयोजन समिति के मुख्य संयोजक दिनेश कुमार वत्स विश्वकर्मा ने बताया कि समारोह में साध्वी प्रज्ञाभारतीजी का सान्निध्य रहा तथा नरसी ग्रुप के एमडी जगदीश कुलरिया का मुख्य आतिथ्य रहा। समारोह में कला जगत के 20 कलाकारों का सम्मान किया गया। नरसी इंटीरियर इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रा.लि. नरसी एंड एसोसिएशन द्वारा प्रायोजित इस समारोह को सम्बोधित करते हुए साध्वी प्रज्ञाभारतीजी ने बताया कि हमें अपने बुजुर्गों का सम्मान करना चाहिए, उनका साथ देना हमारी इच्छा हो न कि मजबूरी हो। साध्वी प्रज्ञाभारतीजी ने बताया कि वे अपने एनजीओ संभव इंटरनेशनल के माध्यम से कौशल योजना के तहत नोएडा में डॉ. रामवंजी सुतार के नाम से एक कॉलेज स्थापित करना चाहती हैं जिसमें कला-कौशल का विशेष रूप से प्रशिक्षण दिया जाएगा। समारोह में डॉ. रामवंजी सुतार का शताब्दी सम्मान, साध्वी प्रज्ञाभारतीजी एवं मुख्य अतिथि जगदीश कुलरिया का अभिनन्दन किया गया।

इसके अलावा डॉ. सविता राव, डॉ.रामजीलाल जांगिड़, अनिलराम सुतार, राम आश्रे विश्वकर्मा, एम.के. राजपूत सहित 20 कलाकारों का सम्मान किया गया। समारोह को सम्बोधित करते हुए मुख्य अतिथि नरसी ग्रुप के एमडी जगदीश कुलरिया ने कहा कि डॉ. राम सुतार जी जैसा व्यक्तित्व आज के युवाओं के लिए प्रेरणादायी है। कला-कौशल के साथ-साथ सक्रियता से अपने हुनर को पूरे विश्व में पहचान दिलाने वाले डॉ. राम वंजी सुतार आज भी अपने काम के प्रति एक युवा की भांति सक्रिय हैं। प्रत्येक प्रोजेक्ट को शिद्त से पूरा करना उनकी जीवनशैली है। नरसी ग्रुप के एमडी जगदीश कुलरिया ने कहा कि डॉ. राम वंजी सुतार के हाथों से गढ़ी गयी शानदार प्रतिमाओं की फ़ेहरिस्त में अब तक की दुनिया की सबसे ऊँची प्रतिमा, सरदार पटेल की ‘स्टेचू ऑफ़ यूनिटीÓ (182 फीट लम्बी) का नाम भी शुमार होता है। इस उम्र में भी जिस बारीकी और समर्पण के साथ उन्होंने इस प्रतिमा को बनाया है, उससे साबित होता है कि भारत में शायद ही कोई दूसरा शिल्पकार इस मुकाम तक पहुँच पाए। आयोजन समिति के अध्यक्ष महेन्द्र राजपूत स्वर्णकार रहे। पुष्पवर्षा के मुख्य आयोजक ओपी शर्मा कोटा ने स्वस्तिवाचन के साथ डॉ. राम वंजी सुतार पर पुष्पवर्षा की। सात प्रकार के विभिन्न फूलों से पुष्पवर्षा से माहौल सकारात्मकता से भरपूर हो गया। कार्यक्रम के सूत्रधार प्रो. डॉ. रामजीलाल जांगिड़ के मार्गदर्शन में हुआ यह आयोजन सबके लिए प्रेरणादायी रहा। अखिल भारतीय जांगिड़ महासभा की उपप्रधान एवं आयोजन की मुख्य संयोजिका सीमा शर्मा जांगिड़, डॉ. अनिता गर्ग, आदित्य धीमान, डॉ. चंद्रपाल भारद्वाज की मुख्य सहभागिता रही तथा डॉ. सविता राय ने स्वागत उद्बोधन दिया।
सुतार परिवार में पीढ़ी-दर-पीढ़ी चल रही शिल्पकला
महाराष्ट्र के धूलिया जिले के गोन्दुर गाँव में जन्में राम वनजी सुतारजी विश्व-प्रसिद्द मूर्तिकार हैं। अब तक उन्होंने लगभग हजारों छोटी-बड़ी मूर्तियाँ बनाई हैं। हाल ही में, उन्होंने स्टेचू ऑफ़ यूनिटी सरदार पटेल की प्रतिमा का निर्माण किया है। यह दुनिया में अब तक की सबसे ऊँची प्रतिमा है। भारत, फ्रांस, इटली, इंग्लैंड, अर्जेंटीना, रूस, मलेशिया सहित लगभग 150 देशों में गाँधीजी की जो मूर्तियाँ लगी हैं, उनका निर्माण एक ही शिल्पकार ने किया है और वे हैं राम वंजी सुतार। सुतार के पुत्र अनिल सुतार भी अपने पिता की ही तरह ख्यातिप्राप्त मूर्तिकार हैं। वे अपने पिता के साथ नॉएडा में स्थित उनके स्टूडियो व कार्यशाला को संभालते हैं। शिल्पकला सुतार परिवार में पीढ़ी-दर-पीढ़ी चली आ रही है और हर बार नई पीढ़ी इस कला को एक नया मुकाम देती है। साल 1953 में राम वंजी सुतार ने आर्ट डिप्लोमा पूरा किया और साथ ही, वे अपने बैच के टॉपर रहे। उन्हें स्वर्ण पदक से नवाज़ा गया। पढ़ाई पूरी करने के बाद ही साल 1954 में उन्हें पुरातत्व विभाग में नौकरी मिली। यहाँ उन्होंने अजंता और एलोरा की गुफाओं की मूर्तियों को संवारने का काम किया। 1954 और 1958 के बीच, सुतार ने अजंता और एलोरा की गुफाओं की कई प्राचीन नक्काशियों को पुनर्स्थापित करने में योगदान दिया. सुतार के करियर को उनकी रचना, मध्य प्रदेश में 45 फुट के चंबल स्मारक ने स्थापित किया. यह स्मारक एक ही चट्टान से तराशा गया था, और इसका अनावरण 1961 में किया गया था. स्मारक अपने दो बच्चों, राजस्थान और मध्य प्रदेश के साथ मां चंबल का प्रतिनिधित्व करता है. इसके बाद वे ऑडियो-विज़ुअल पब्लिसिटी, सूचना और प्रसारण मंत्रालय, नई दिल्ली में तकनीकी सहायक (मॉडल) के रूप में शामिल हुए और 1959 तक वहां काम किया।
