गणेश स्थापना के दो मुहुर्त, पढ़ें ये जरूरी बातें
गणेश उत्सव भगवान गणेश के जन्म या जयंती के दिन से प्रारंभ होता है, जिसमें भगवान श्री गणेश के माटी के विग्रह (मूर्ति) की स्थापना कर उसकी एक विशेष अवधि तक पूजा-अर्चना की जाती है, बाद में उसका विसर्जन कर दिया जाता है। श्री गणेश का प्राकट्य भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को हुआ था। प्रतिवर्ष इसी दिन गणेश स्थापना की जाती है।
इस वर्ष 18 एवं 19 दोनों ही दिन मध्याह्नव्यापिनी चतुर्थी रहेगी जो कि गणेश स्थापना में ग्रहण करने योग्य है एवं शास्त्र के निर्देशानुसार पूर्वविद्धा तिथि 18 सितंबर को गणेश स्थापना होना उचित है लेकिन यदि चतुर्थी मध्याह्नव्यापिनी हो और इस दिन रविवार या मंगलवार हो तो यह संयोग अतिशुभ महाचतुर्थी कहलाता है, जो अतिश्रेष्ठ होता है। मंगलवार को मध्याह्नव्यापिनी चतुर्थी का संयोग बनने से इस दिन महाचतुर्थी का अतिश्रेष्ठ मुहूर्त बनेगा। इस वर्ष अनंत चतुर्दशी 28 सितंबर 2023 को होना निर्विवादित है, जो दस दिवसीय गणना के अनुसार 19 सितंबर से प्रारंभ होकर 28 सितंबर तक गणेश उत्सव का होना प्रतिपादित कर रहा है।
गणेश स्थापना 19 सितंबर 2023 किया जाना अधिक श्रेष्ठ है, लेकिन यदि 18 सितंबर को गणेश स्थापना की जाए तो वह भी निर्दोष होकर ग्रहण करने योग है, किंतु यथासंभव श्रद्धालुगण गणेश स्थापना 19 सितंबर 2023 मंगलवार के दिन करें तो यह अतिश्रेष्ठ रहेगा क्योंकि इस दिन महाचतुर्थी का संयोग बनेगा।
ऐसी मूर्ति करें स्थापित
गणेशजी की किसी आसन या सिंहासन पर बैठी हुई मूर्ति घर में लाएं। गणेशजी की मिट्टी या बालू की प्रतिमा स्थापित करना चाहिए, क्योंकि माता पार्वती ने उन्हें इसी से बनाया था। यह जरूर ध्यान रखें कि उनके साथ मूषक जरूर हो। प्रतिमा का एक दांत टूटा हुआ हो। गणेश प्रतिमा के चार हाथ हो। चारों हाथों में वे पाश, अंकुश, मोदक पात्र तथा वरमुद्रा धारण किए हुए हो। जिस मूर्ति में सूंड का अग्रभाग बाईं है उस मूर्ति को स्थापित करने का प्रचलन है। प्रयास करें कि मूर्ति जनेऊधारी हो। यदि नहीं हो तो पूजा के समय मूर्ति को जनेऊ धारण करवाएं। गणेशजी का सिर मुकुट, टोपी या पगड़ी आदि से परंपरा अनुसार ढका होना चाहिए। गणेशजी रक्तवर्ण, लम्बोदर, शूर्पकर्ण तथा पीतवस्त्रधारी हैं। लाल या पीले वस्त्र शुभ होते हैं।
गणेशजी के मस्तक पर केसर या चंदन का त्रिपुण्ड तिलक लगा होना चाहिए। घर के उत्तर या ईशान कोण में गणेश प्रतिमा की स्थापना करना चाहिए। मूर्ति का रंग सफेद, सुनहरी, सिंदूरी या हरा लेना शुभ है।