जल दान व पूजा-पाठ का श्रेष्ठ माह है ज्येष्ठ
हिन्दू पंचांग के तीसरे मास ज्येष्ठ मास को सभी मास में शुभ माना गया है। ज्येष्ठ माह में गर्मी चरम पर होती है और सूर्य के तेज प्रकाश के कारण नदी व तालाब सूख जाते हैं। इसलिए इस महीने में जल दान का विशेष महत्व है। ज्येष्ठ माह में पूजा-पाठ और दान-धर्म करने से कई प्रकार के ग्रह दोष से मुक्ति मिल जाती है। इस माह में नौतपा भी लगता है। शास्त्रों में इसी माह में जल के संरक्षण का महत्व बताया गया है। ज्येष्ठ मास में जल के दान को बहुत बड़ा पुण्य माना गया है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार ज्येष्ठ माह में हनुमानजी, सूर्य देव और वरुण देव की विशेष उपासना की जाती है। इस महीने में गंगा दशहरा, निर्जला एकादशी, नारद जयंती, वट सावित्री व्रत जैसे महत्वपूर्ण व्रत व त्योहार मनाए जाएंगे।
जल का दान सबसे श्रेष्ठ- इस माह में न सिर्फ आम लोगों को बल्कि पशु-पक्षियों की प्यास बुझाने के लिए जल उपलब्ध कराना चाहिए। ज्येष्ठ मास में प्याऊ लगाना, नल लगवाना और पोखर, तलाबों का सरंक्षण करना विशेष फलदायी माना गया है।
ज्येष्ठ माह का महत्व इसी मास में गंगा का धरती पर अवतरण हुआ था। इस कारण इस मास में गंगा दशहरा का पर्व मनाया जाता है। इसी महीने में भगवान राम अपने परम भक्त हनुमानजी से मिले थे। इसके साथ ही ज्येष्ठ महीने में ही भगवान शनिदेव का जन्म भी हुआ था। ज्येष्ठ मास भगवान विष्णु का प्रिय मास है। इस मास में भगवान विष्णु की पूजा का विशेष महत्व बताया गया है। भगवान विष्णु और उनके चरणों से निकलने वाली मां गंगा और पवनपुत्र हनुमान की पूजा का बहुत ज्यादा महत्व माना गया है।
ज्येष्ठ माह में दोपहर में चलना खेलना मना है। इन महीनों में गर्मी का प्रकोप रहता है अत: ज्यादा घूमना-फिरना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। अधिक से अधिक शयन करना चाहिए। इस माह बेल खाना चाहिए या बेल का रस पीना चाहिए। इस माह में ज्यादा से ज्यादा पानी पीना चाहिए। इस माह में लहसुन, राईं, गर्मी करने वाली सब्जियां और फल नहीं खाना चाहिए। इस माह में जल की पूजा की जाती है। इस माह में जल को लेकर दो त्योहार मनाए जाते हैं, पहला गंगा दशहरा और दूसरा निर्जला एकादशी। घाघ ने कहा कि जो व्यक्ति ज्येष्ठ माह में दिन में सोता है वह रोगी होती है। ज्येष्ठ के माह में ज्येष्ठ पुत्र या पुत्री का विवाह करना शुभ नहीं माना जाता है। ज्येष्ठ माह में एक समय भोजन करना वाला निरोगी रहता है। महाभारत के अनुशासन पर्व में लिखा है- ‘ज्येष्ठामूलं तु यो मासमेकभक्तेन संक्षिपे ऐश्वर्यमतुलं श्रेष्ठं पुमान्स्त्री वा प्रपद्यते। इस माह तिल का दान करने से अकाल मृत्यु से जातक बचा रहता है।