मंगलवार को षटतिला एकादशी, तिल का करें दान, हवन कर भगवान विष्णु का करें पूजन
बीकानेर। षटतिला एकादशी 6 फरवरी को है, माघ मास के कृष्णपक्ष की एकादशी को षटतिला एकादशी व्रत किया जाता है। इस दिन तिल का विशेष महत्त्व है। पुराणों के अनुसार इस दिन उपवास करके तिलों से ही स्नान, दान, तर्पण और पूजा की जाती है। इस दिन तिल का उपयोग स्नान, प्रसाद, भोजन, दान, तर्पण आदि सभी चीजों में किया जाता है। तिल के कई प्रकार के उपयोग के कारण ही इस दिन को षटतिला एकादशी कहते हैं। इस दिन छ: प्रकार के तिल प्रयोग होने के कारण इसे षट्तिला एकादशी के नाम से पुकारते हैं। तिले तिले भवे द्रौण हेमदानं समम् फलम !! इस प्रकार मनुष्य जितने तिल दान करता है। वह उतने ही सहस्त्र वर्ष स्वर्ग में निवास करता है।
1. तिलस्नान, 2. तिल की उबटन, 3. तिलोदक, 4. तिल का हवन, 5. तिल का भोजन, 6. तिल का दान, इस प्रकार छ: रुपों में तिलों का प्रयोग षट्तिला कहलाती है। इससे अनेक प्रकार के पाप दूर हो जाते हैं। माघ माह हिन्दू धर्म में बेहद पवित्र माना जाता है। इस महीने मनुष्य को अपनी इंद्रियों पर नियंत्रण रखते हुए क्रोध, अहंकार, काम, लोभ व चुगली आदि का त्याग करना चाहिए। षटतिला एकादशी के दिन भगवान विष्णु की चन्दन, कपूर, नैवेद्य आदि से भगवान विष्णु का पूजन करना चाहिए। उसके बाद श्रीकृष्ण नाम का उच्चारण करते हुए यथा शक्ति पुष्प चढाकर विधि विधान से अर्चन कर, की हुई पूजा का हाथ में जल लेकर भगवान विष्णु के चरणों में अर्पण कर दें।
एकादशी की रात को भगवान का भजन-कीर्तन करना चाहिए। एकादशी को 108 बार ú नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र से उपलों को हवन में स्वाहा करना चाहिए। इसके बाद ब्राह्मण की पूजा कर उसे घड़ा, छाता, जूता, तिल से भरा बर्तन व वस्त्र दान देना चाहिए। यदि संभव हो तो काली गाय दान करनी चाहिए। शास्त्रों में वर्णित है कि बिना दान किए कोई भी धार्मिक कार्य सम्पन्न नहीं होता।
पंडित गिरधारी सूरा (पुरोहित) 9950215052