श्राद्धपक्ष में करें पितरों को प्रसन्न

पितरों का याद करने के 16 दिवसीय पितृपक्ष या श्राद्धपक्ष 29 सितंबर शुक्रवार से शुरू हो रहे हैं। श्राद्ध पक्ष में जलाशयों में लोग स्नान करके अपने पूर्वजों को याद करेंगे। घरों में भी स्नान करके पूजा-अर्चना करेंगे। जरूरमंदों की मदद करेंगे। उनको भोजन कराएंगे। ब्राह्मणों को भोज कराएंगे। हर वर्ष की तरह पितृपक्ष में दान-पुण्य के काम होंगे। इस बार ग्रह-नक्षत्रों के विशेष योग-संयोग व फल देने वाले बताए जा रहे हैं। भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि से प्रोष्ठपदी महालय श्राद्ध का आरंभ हो जाता है। पितृपक्ष पूरे 16 दिन के रहेंगे। हालांकि कुछ पंचांगों में चतुर्थी तिथि का क्षय बताया है, लेकिन तृतीया और चतुर्थी का अलग-अलग गणित धर्मशास्त्र में बताया गया है। पितृपक्ष में उत्तराभाद्रपद नक्षत्र, वृद्धि योग, बव करण, मीन राशि के चंद्रमा होंगे। पितृपक्ष की शुरुआत सूर्य मंगल के कन्या राशि पर गोचरस्थ है। यह एक विशिष्ट स्थिति है, क्योंकि कन्या राशि के सूर्य को धर्मशास्त्र व पुराण में विशिष्ट मान्यता दी गई है। 29 तारीख की मध्य रात्रि में अमृत सिद्धि योग का भी संयोग है जो अगले दिन सुबह तक रहेगा। ग्रहों के वक्री एवं मार्गी होने की गणना के अनुसार लगभग 400 वर्ष बाद इस प्रकार के ग्रह दृष्टि संबंध व गोचर का क्रम बन रहा है। पितृ पक्ष में शुभ कार्य या मांगलिक कार्यों की मनाही होती है। पितरों की आत्मिक शांति के लिए ब्राह्मण भोज के साथ-साथ गाय, श्वान और कौए के लिए भी ग्रास निकालने की परंपरा है।

पौराणिक मान्यता है कि गाय में 33 लाख देवी-देवताओं का वास होता है, इसलिए गाय का विशेष धार्मिक महत्व है। पितृ पक्ष में पितरों की आत्मिक शांति के लिए ब्राह्मण भोज के साथ-साथ गाय, श्वान और कौए के लिए भी ग्रास निकालने की परंपरा है। पौराणिक मान्यता है कि गाय में 33 लाख देवी-देवताओं का वास होता है, इसलिए गाय का विशेष धार्मिक महत्व है। धार्मिक मान्यता है कि श्वान और कौए पितरों के वाहक होते हैं, यही कारण है कि श्वान और कौए के लिए भी ग्रास निकाला जाता है। पितृपक्ष में नई चीजों की खरीदारी करने से पितर नाराज होते हैं। पितृपक्ष में खरीदी गई चीजें पितरों के लिए समर्पित मानी जाती है। पितृपक्ष के दौरान इस बात का ध्यान रखें कि साफ-सफाई बनी रहे। वास्तु शास्त्र के अनुसार, घर के मुख्य द्वार से सकारात्मक ऊर्जा का प्रवेश होता है। ऐसे में पितृपक्ष के दौरान इस बात का ध्यान रखें कि साफ-सफाई बनी रहे। साथ ही रोजाना सुबह के समय मुख्य द्वार पर जल चढ़ाना चाहिए, इससे पितर प्रसन्न होते हैं।
वास्तु शास्त्र के मुताबिक, पितरों की तस्वीर लगाते समय जगह का ध्यान रखें। कभी भी बेडरूम, पूजा घर और रसोई जैसी जगहों पितरों की तस्वीर नहीं लगाना चाहिए। इनके अलावा कहीं और तस्वीर लगाने पर आर्थिक नुकसान होता है। पितरों की तस्वीर सही दिशा में लगाने से शुभ परिणाम प्राप्त होते हैं। दक्षिण दिशा में पितरों की तस्वीर लगाना चाहिए। इससे घर में वास्तु दोष समाप्त होता है। पितृपक्ष के दौरान तिजोरी को वास्तु के हिसाब से सही स्थान पर रखने पर धन आकर्षित होता है। वैसे तो वास्तु के अनुसार, पितृ पक्ष में धन की तिजोरी को घर की दक्षिण या दक्षिण-पश्चिम दिशा में रखना चाहिए। इस दिशा में ही पितरों का वास होता है, ऐसे में वे प्रसन्न होकर आपको सुख-समृद्धि का आशीर्वाद देते हैं।