संसार के सब सुख देता है पार्थिव शिवलिंग, ऐसे करें निर्माण व पूजन
कलयुग में मिट्टी के शिवलिंग के पूजन का है विशेष महत्व। शिवलिंग की ऊंचाई 12 अंगुल से अधिक नहीं होनी चाहिए। भगवान शिव एकमात्र ऐसे देवता हैं जिनकी पूजा साकार और निराकार दोनों रूप में होती है। साकार रूप में भगवान शिव मनुष्य रूप में हांथ में त्रिशूल और डमरू लिए बाघ की छाल पहनें नंदी की सवारी करते हुए नजर आते हैं। शिवपुराण के अनुसार साकार औऱ निराकार दोनों रूपों में महादेव की पूजा फलदायी होती है।
शिवलिंग की पूजा करना अधिक उत्तम माना गया है। शिव पुराण में भगवान शिव की अराधना के लिए शिवलिंग का विशेष महत्व बताया गया है। शिवलिंग की अराधना करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और दुखों का निवारण होता है। देवलिंग, असुरलिंग, अर्शलिंग, पुराण लिंग, मनुष्य लिंग, स्वयंभू लिंग कई प्रकार के शिवलिंग होते हैं तथा इनका अलग महत्व और प्रभाव होता है। लेकिन शिवपुराण के अनुसार पार्थिव शिवलिंग का विशेष महत्व है। ऐसे में आइए जानते हैं मिट्टी का शिवलिंग कैसे बनाएं और शिवपुराण में इसका क्या महत्व है
नदी या तालाब की मिट्टी से बनाएं शिवलिंग
धर्म शास्त्रों के अनुसार पार्थिव शिवलिंग बनाने के लिए किसी पवित्र नदी या तालाब की मिट्टी का इस्तेमाल करना चाहिए. इस मिट्टी को चंदन और फूलों से पूजा करके इसमें दूध मिलाकर शिव मंत्र बोलते हुए शिवलिंग बनाने की प्रक्रिया शुरू करनी चाहिए. ध्यान देने योग्य बात यह है कि इस शिवलिंग को बनाते समय व्यक्ति का मुंह हमेशा पूर्व या उत्तर दिशा की ओर ही रहना चाहिए. मिट्टी के शिवलिंग को पार्थिव शिवलिंग कहा जाता है। मिट्टी का शिवलिंग गाय के गोबर, गुड़, मक्खन, भस्म, मिट्टी और गंगा जल मिलाकर बनाया जाता है। पार्थिव शिवलिंग बनाते समय इन सभी चीजों को एक में मिला दें और फिर गंगाजल मिलाकर बनाएं। ध्यान रहे मिट्टी का शिवलिंग बनाते समय पवित्र मिट्टी का इस्तेमाल करें। कोशिश करें की बेल के पेड़ की मिट्टी या फिर चिकनी मिट्टी का उपयोग करें।
पार्थिव शिवलिंग का महत्व
शिव महापुराण के अनुसार पार्थिव शिवलिंग की पूजा करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और कष्टों का निवारण होता है तथा सुख समृद्धि और पुत्र की प्राप्ति होती है। कलयुग में मोक्ष प्राप्ति के लिए और व्यक्ति की सभी मनोकामनाएं पूर्ण के लिए मिट्टी के शिवलिंग को उत्तम बताया गया है। कहा जाता है कि जो भी भक्त मिट्टी का शिवलिंग बनाकर पार्थिव शिवलिंग का पूजन और रुद्राभिषेक करता है उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और विशेष फल की प्राप्ति होती है। शिवपुराण में पार्थिव शिवलिंग का विशेष महत्व है। मान्यता है कि सावन के महीने में पार्थिव शिवलिंग की पूजा करने पर व्यक्ति के जीवन से जुड़ी बड़ी से बड़ी बाधाएं दूर और कामनाएं पूरी होती हैं. पार्थिव शिवलिंग की पूजा करने वाले शिव साधक के जीवन से अकाल मृत्यु का भय दूर हो जाता है. शिवपुराण के अनुसार पार्थिव पूजा करने वाले साधक को भगवान शिव के आशीर्वाद से धन-धान्य, सुख-समृद्धि और सौभाग्य की प्राप्ति होती है और वह सभी सुखों को भोगता हुआ अंत में मोक्ष को प्राप्त होता है.
मान्यता है कि भगवान शिव का पार्थिव पूजन सबसे पहले भगवान राम ने किया था. मान्यता है कि भगवान श्री राम ने लंका पर कूच करने से पहले भगवान शिव की पार्थिव पूजा की थी. मान्यता है कि कलयुग में भगवान शिव का पार्थिव पूजन कूष्माण्ड ऋषि के पुत्र मंडप ने किया था. जिसके बाद से अभी तक शिव कृपा बरसाने वाली पार्थिव पूजन की परंपरा चली आ रही है. मान्यता यह भी है कि शनिदेव ने अपने पिता सूर्यदेव से ज्यादा शक्ति पाने के लिए काशी में पार्थिव शिवलिंग बनाकर पूजा की थी
जिस घर में पार्थिव शिवलिंग का पूजन होता है चाहे वो हर महीने या साल में एक बार हो वह भगवान शिव की विशेष महिमा होती है। मिट्टी के 1001 पार्थिव शिवलिंग का निर्माण कर जो व्यक्ति पूजन करता है विशेष रूप से श्रावण के महीनो में वह पाप से मुक्त हो जाता है और इन्हे साक्षी मान कर जो संकल्पित कामनाये मांगता है उन कामनाओ की पूर्ती होती है। पार्थिव शिवलिंग के पूजन से भोग और मोक्ष दोनों की प्राप्ति होती है। 11 छोटे मिट्टी के शिवलिंग का पूजन श्रावण के हर सोमवार को करना चाहिए। यह परिवार के लिए श्रेष्ठ है इससे परिवार में शुभता की वृद्धि होती है। शिवलिंग के पूजन के समय आप शिव महिमा स्त्रोत्र ,12 ज्योतिर्लिंग के नाम ,और ú नम: शिवाय का जप भी कीजिये यह बड़ा प्रभावशाली है। श्री शिवाय नमस्तुभ्यं मंत्र को भी पार्थिव शिवलिंग पूजा में जपने का प्रचलन है। यह मंत्र भी शिव पुराण से लिया गया है। आप यह पूजन ब्राह्मण से पुरे विधिविधान से करा सकते है जिसमे रूद्र अष्ट अध्याय तथा उसमे समाहित 16 मंत्रो से पूजन तथा नमक-चमक विधि से रुद्राभिषेक आदि विशेष रूप से करवा सकते है। आप अपने घर पर परिवार के साथ मिलकर ? नम: शिवाय का जप कर सकते है इसके पश्चात् आप शिव आरती कीजिये तथा फिर कपूर आरती कीजिये। किसी भी पूजन के प्रारंभ में आपको गणेश जी का पूजन अवश्य करना चाहिए क्योंकि वह प्रथम पूज्य है।
पार्थिव शिवलिंग का विसर्जन किस स्थान पर करे
मिट्टी के शिवलिंग का विसर्जन करने से पहले आपने जो -जो सामग्री शिवलिंग पर समर्पित की है जैसी जल-दूध जो तरल रूप में थाली में एकत्रित है उसे किसी पात्र में निकाल ले ताकि वह बिखरे न। अतिरिक्त फूल माला को निकाल कर अलग कर ले चाहे तो आप इन्हे पौधो में या खाद के रूप में उपयोग कर सकते है।
उसके बाद संपूर्ण थाली (जिसमे पार्थिव शिवलिंग है) को लेकर किसी नदी या तालाब जिसका पानी साफ हो में विसर्जित करे।
अब जो दूध -दही वाली पंचामृत सामग्री जिसे हमने अलग पात्र में एकत्रित किया था उसे भी जल में प्रवाहित कर दे। अगर थोड़े बहुत फूल है तो उन्हें भी प्रवाहित कर दे। अब समस्या तब आती है जब आपके घर के आस पास कोई नदी तालाब न हो ऐसी स्थिति में आप मिट्टी के शिवलिंग को किसी पेड़ के पास गड्डा करके उसमे दबा दे। आपको कई मंदिरो में पेड़ मिल जायेंगे। और जो पूजन सामग्री जैसे फूल;माला है उसे मंदिर के पुजारी से पूछकर उस स्थान पर रख दे।