उत्तर पश्चिम रेलवे की सभी गाडिय़ों के डिब्बों में लगाए गए 11000 बायो टॉयलेट, प्लेटफार्म से हटेगी गंदगी
रेल लाइन पर अपशिष्ट पदार्थ एवं पानी नहीं गिरेगा, इससे ट्रैक रहेगा सुरक्षित : कैप्टन शशि किरण
बीाकनेर। भारतीय रेलवे द्वारा ट्रेनों और आसपास के वातावरण को पर्यावरण अनुकूल बनाने के लिये डिफेन्स रिसर्च एवम् डेवलपमेंट संस्थान के तकनीकी सहयोग से सभी ट्रेनों के सवारी डिब्बों में बायो टॉयलेट लगाने का कार्य किया गया है। उत्तर पश्चिम रेलवे की सभी सवारी गाडिय़ों के डिब्बों में लगभग 11000 बायो टॉयलेट लगा दिए गए हैं। उत्तर पश्चिम रेलवे के मुख्य जनसंपर्क अधिकारी कैप्टन शशि किरण ने बताया कि परंपरागत टॉयलेट से स्टेशनों एवं रेलवे ट्रैक पर अत्यधिक गंदगी को देखते हुए वर्ष 2013 से डिफेन्स रिसर्च एवम् डेवलपमेंट संस्थान के तकनीकी सहयोग से सभी ट्रेनों के सवारी डिब्बों में बायो टॉयलेट लगाने का कार्य प्रारंभ किया गया था। बायो-टॉयलेट एक संपूर्ण अपशिष्ट प्रबंधन समाधान है जो बैक्टीरिया इनोकुलम की मदद से ठोस मानव अपशिष्ट को बायो-गैस और पानी में बदल देता है। समय समय पर आवश्यकतानुसार मात्रा कम होने पर इन बैक्टीरिया को बायो टैंक मे डाला जाता है। बायो-टॉयलेट का बचा हुआ पानी रंगहीन, गंधहीन और किसी भी ठोस कण से रहित होता है।
इसके लिए किसी और उपचार/अपशिष्ट प्रबंधन की आवश्यकता नहीं होती है, जिससे वातावरण पर्यावरण अनुकूल रहता है। बायो-टॉयलेट के प्रयोग से रेल लाइन पर अपशिष्ट पदार्थ एवं पानी नहीं गिरता है, जिससे जंग आदि की समस्या नहीं होने से रेलवे ट्रैक की गुणवत्ता एवं उम्र में बढ़ती है। बायो-टॉयलेट के प्रयोग सेकोच मेंटेनेंस स्टाफ को भी डिब्बे के नीचे अंडर फ्रेम में कार्य करते समय गंदगी और बदबू से राहत मिलती है। कैप्टन शशि किरण ने बताया कि चलती गाडिय़ों में इन शौचालयों में आने वाली समस्या के तवरित निदान हेतु प्रशिक्षित कर्मचारियों को आवश्यक उपकरणों के साथ तैनात किया जाता है। शौचालयों में कूड़ेदान की व्यवस्था भी की गयी है ताकि कचरे का निपटान ठीक प्रकार से हो एवं बायो टॉयलेट चॉक न हो। इन बायो टॉयलेट शौचालयों के सही तरह से कार्यशील व् पर्यावरण अनुकूल रखने हेतु निकलने वाले अपशिष्ट पदार्थों की आवधिक जाँच की जाती है। इस जाँच हेतु विभिन्न मंडलों मे प्रयोगशाला स्थापित की गयी है। जयपुर में स्थापित प्रयोगशाला हृ्रक्चरुसे प्रमाणित प्रयोगशाला है।