एमएलए की टिकटों पर गहन मंथन, कांग्रेस करवा रही सर्वे
बीकानेर। कांग्रेस ने इस बार विधानसभा चुनावों की तैयारियों को लेकर जुगत शुरू कर दी है। खासतौर पर विधायकों के सर्वे करवा कर टिकट काटने न काटने पर गहन मंथन हो रहा है। पिछले एक सप्ताह से पार्टी जिस तरह सक्रिय नजर आ रही है, उससे लगता है वह पुरानी गलतियों को दोहराना नहीं चाहती। विधानसभा चुनाव से छह माह पहले विधायकों से फीडबैक लेना इस दिशा में महत्वपूर्ण कड़ी है।
फीडबैक के बाद मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कुछ मंत्रियों और विधायकों के खिलाफ एंटी इनकम्बेंसी की बात न सिर्फ सार्वजानिक रूप से स्वीकारी बल्कि टिकट काटने के संकेत भी दे डाले। तीन दिन जयपुर में विधायकों के साथ वन-टू-वन मुलाकात से निकले राजनीतिक निचोड़ को मुख्यमंत्री ने समझने का प्रयास भी किया और उसके अनुरूप रणनीति बनाने पर भी जोर दिया। कांग्रेस आलाकमान के साथ-साथ मुख्यमंत्री भी जानते हैं कि 2003 और 2013 में सत्ता में रहते प्रदेश में कांग्रेस अपनी सरकार रिपीट करने में नाकामयाब रही।
कांग्रेस की तरफ से पिछले दिनों दो सर्वे कराने की बात सामने आ रही है। एक सर्वे पार्टी आलाकमान ने निजी एंजेसी से कराया है तो दूसरा सर्वे मुख्यमंत्री ने कराया है। दोनों सर्वे में सरकार की योजनाओं से लेकर सरकार के कामकाज, मंत्रियों की परफॉर्मेंस और विधायकों की अपने क्षेत्र में छवि को लेकर सवाल पूछे गए थे। विधायकों से पूछे सवालों में भी कांग्रेस ने इन्ही मुद्दों पर उनसे राय मांगी है। विधायकों से वन टू वन फीडबैक के बाद मुख्यमंत्री का दो दिन दिल्ली में डेरा जमाने को लेकर भी राजनीतिक गलियारों में उत्सुकता है।
पार्टी के भीतर अनुशासनहीनता पर लगाम लगाने को लेकर पार्टी आलाकमान खासा चिंतित है। आलाकमान चुनावी दौर में गहलोत को फ्री हैंड तो दे रहा है, लेकिन वह सचिन पायलट को भी नाराज नहीं करना चाहता। पिछले दिनों पायलट और उनके समर्थक मंत्रियों-विधायकों की बयानबाजी को आलाकमान इस बार गंभीरता से ले रहा है। आलाकमान और गहलोत चुनावों में भाजपा से मुकाबले से पहले अपने घर को संभालना चाहते हैं। 2008 के चुनाव में 96 सीटें जीतकर सत्ता में आई थी कांग्रेस। 2013 के चुनाव हुए तो 96 में से सिर्फ 6 विधायक ही दुबारा जीतकर आ पाए। इनमें अशोक गहलोत, बृजेन्द्र ओला, महेन्द्रजीत सिंह मालवीय, गोविंद सिंह डोटासरा, मेवाराम जैन और श्रवण कुमार थे। श्रीमाधोपुर सीट से विधानसभाध्यक्ष दीपेन्द्र सिंह भी भाजपा लहर में अपनी सीट बचाने में कामयाब नहीं हो पाए