पीलिया : समय रहते इलाज नहीं मिला तो हो सकता है जानलेवा
होम्योपैथी व परहेज से पीलिये पर पूर्णत: नियंत्रण
वायरल हैपेटाइटिस या जोन्डिस को साधारण लोग पीलिया के नाम से जानते हैं। यह रोग बहुत ही सूक्ष्म विषाणु (वाइरस) से होता है। शुरू में जब रोग धीमी गति से व मामूली होता है तब इसके लक्षण दिखाई नहीं पड़ते हैं, लेकिन जब यह उग्र रूप धारण कर लेता है तो रोगी की आंखें व नाखून पीले दिखाई देने लगते हैं। बीकानेर के जाने-माने होमियोपैथिक चिकित्सक डॉ. यासिर मिर्जा ने बताया कि एनाबॉलिक स्टेरॉयड और कुछ अन्य दवाओं का उपयोग, शराब का सेवन, ऑटोइम्यून रोग, दुर्लभ आनुवंशिक कारणों से जुड़े मेटाबॉलिक दोष, वायरस के कारण संक्रमण और हेपेटाइटिस (ए, बी और सी) शामिल होते हैं। सिर दर्द, लो-ग्रेड बुखार, मतली और उल्टी, भूख कम लगना, त्वचा में खुजली और थकान आदि लक्षण होते हैं। त्वचा और आंखों का सफेद भाग पीला पड़ जाता है। इसमें मल पीला और मूत्र गाड़ा हो जाता है। डॉ. यासिर ने बताया कि होम्योपैथी चिकित्सा से पीलिया की बीमारी से पूर्णत: छुटकारा मिल जाता है। पीलिया के लक्षण दिखने पर तुरन्त अपनी दिनचर्या और खानपान में बदलाव लाएं। बाहर का खाना न खायें।
एक साथ पूरा खाना न खायें, थोड़ी-थोड़ी देर के अंतराल पर खायें। ज्यादा मिर्च-मसालेदार तला, भुना खाना न खायें। मैदा आदि का प्रयोग ना करें। दाल और बींस न खाएं। ये लीवर पर ज्यादा बोझ डालते हैं। हार्डवर्क करने से बचें। शराब का सेवन न करें। पीलिया में ज्यादा नमक वाली चीजें अचार आदि खाने से बचना चाहिए। कॉफी या चाय का सेवन न करें, इसमे मौजूद कैफीन पीलिया रोग को आसानी से ठीक नहीं होने देता। पीलिया में दाल खाने से परहेज करना चाहिए, इससे आंतों में सूजन हो सकती है। मक्खन, जंक फूड, मीट, अंडे, चिकन और मछली- पीलिया में कुछ प्रोटीन युक्त आहार (अंडा, मांस आदि) लेने से बचना चाहिए।
पीलिया के मरीज के लिए इन सभी चीजों को पचा पाना मुश्किल होता है। पीलिया का बिगड़ा हुआ रूप है हेपेटाइटिस बी। इसमें रोगी को समय से इलाज न मिलने या रोग की अनदेखी करने से यह हेपेटाइटिस बी का रूप ले लेता है जो जानलेवा हो सकता है। इसलिये पीलिया के लक्षण दिखते ही खानपान और दिनचर्या में बदलाव लाते हुए तुरन्त चिकित्सक से संपर्क करना चाहिये। हेपेटाइटिस बी या पीलिया रोग से निजात दिलाने में होम्योपैथी बेहद कारगर है। चाइना, चेलिडोनियम, कारडुअस, कालमेघ-क्यू, ब्रायोनिया, मर्कसाल, फासफोरस, नैट्रमम्योर, फेरममेट सभी 30 या 200 के पॉवर में चिकित्सक की देखरेख में लक्षणानुसार ली जा सकती हैं।