होली पर संशय करें दूर, पढ़ें ये खबर
आदित्य आचार्य माध्यन्दिन
राज ज्योतिषी आचार्य, बीकानेर
रंग वाली होली , धुलंडी शास्त्रानुसार 26 मार्च को ही है। होलिका दाह और रंग वाली होली ( वसन्तोत्सव ) में परस्पर सम्बन्ध है। प्रायः होलिका दाह के अगले दिन होली मनायी जाती है। वैसे वसन्तोत्सव (होली) का आरम्भ वसन्त पंचमी से ही हो जाता है तथा जैसे-जैसे होली निकट आती है वैसे वैसे इसका उत्कर्ष भी देखने को मिलता है , विशेष रूप से रंगभरी एकादशी के बाद । इसी क्रम में अलग-अलग क्षेत्र में अलग-अलग तिथि में होली मनाने की परंपरा भी देखी जाती है। फिर भी सर्वसाधारण या सामान्यतः रंग वाली होली होलिका दाह के अगले दिन होती है। पर इस वर्ष 24 मार्च को होलिका दहन होने के कारण होली 25 मार्च को मनानी चाहिए या 26 मार्च को? यह संशय है, क्योंकि कहीं 25 मार्च को होली मनाने की सूचना मिल रही है तो कहीं 26 मार्च को। अतः कुछ चर्चा प्रस्तुत है- रंग वाली होली, धुलंडी, ( वसन्तोत्सव) —25 मार्च को मनानी चाहिए या 26मार्च को? इस सन्दर्भ में निम्न वचन ध्यातव्य है-रंग वाली होली या वसन्तोत्सव चैत्र कृष्ण प्रतिपद् ( एकम ) को मनाना चाहिए। यद्यपि 25 मार्च को पूर्णिमा के बाद प्रतिपद् आ रही है फिर भी होली के लिए औदयिक प्रतिपद् ग्राह्य है अर्थात् जिस दिन प्रतिपदा तिथि में ( एकम को) सूर्योदय हो रहा हो उस दिन मनाना चाहिए। इस सन्दर्भ में हेमाद्रि ,भविष्यपुराण आदि ग्रन्थों में कहा गया है-
प्रवृत्ते मधुमासे तु प्रतिपद्युदिते रवौ।कृत्वा चावश्यकार्याणि सन्तर्प्य पितृदेवताः।वन्दयेद्धोलिकाभूमिं सर्वदुःखोपशान्तये।।चैत्रे मासि महाबाहो पुण्ये तु प्रतिपद्दिने।यस्तत्र श्वपचं स्पृष्ट्वा स्नानं कुर्यान्नरोत्तमः।।न तस्य दुरितं किञ्चिन्नाधयो व्याधयो नृप।प्रभाते विमले जाते ह्यङ्गे भस्म च कारयेत्।सर्वाङ्गे च ललाटे च क्रीडितव्यं पिशाचवत्।।सिन्दूरैःकुङ्कुमैश्चैव धूलिभिर्धूसरो भवेत्।गीतं वाद्यं च नृत्यं च कुर्याद्रथ्योपसर्पणम्।।ब्राह्मणैः क्षत्रियैर्वैश्यैःशूद्रैश्चान्यैश्च जातिभिः।एकीभूय प्रकर्तव्या क्रीडा या फाल्गुणैःसदा।बालकैः सह गन्तव्यं फाल्गुने च युधिष्ठिर। ।
पद्मपुराण में कहा गया है-
चैत्रे मासि महापुण्या निर्मिता प्रतिपत्पुरा।तस्यां यःश्वपचं स्पृष्ट्वा स्नानं कुर्यात् सचैलकम्।।न तस्य दुरितं किञ्चिन्नाधयो व्याधयो न च।भवन्ति कुरुशार्दूल तस्मात् सम्यक् समाचरेत्।।
इन भविष्य पुराण, हिमाद्रि, पद्मपुराण आदि के वचनों से तथा इनके आधार पर निर्णयसिन्धु, धर्मसिन्धु (धर्मसिन्धु में चैत्रकृष्ण प्रतिपद् की जगह फाल्गुन कृष्ण प्रतिपद् का प्रयोग अमावस्यान्त मास गणना के अनुसार है। हमारे यहाँ पूर्णिमान्त मास गणना प्रचलित है तदनुसार वह चैत्र कृष्ण प्रतिपद् है) ,वर्षकृत्यदीपक, कृत्यसारसमुच्चय आदि ग्रन्थों में प्रस्तुत विवेचन से स्पष्ट है कि चैत्र कृष्ण औदयिक प्रतिपद् को अर्थात् जिस दिन प्रतिपदा तिथि में सूर्योदय हो उस दिन वसन्तोत्सव (होली) मनाना चाहिए। यदि दो दिन प्रतिपद् हो अर्थात् प्रतिपद् में दो सूर्योदय हों तो पूर्व दिन वाली प्रतिपद् को मनाना चाहिए और प्रतिपद् का क्षय हो तो जब प्रतिपद् मिले(पूर्णिमाविद्ध) तब मनाना चाहिए। इस सन्दर्भ में निर्णयसिन्धु आदि ग्रन्थों में वृद्धवशिष्ठ का वचन उद्धृत है-
वत्सरादौ वसन्तादौ बलिराज्ये तथैव च।पूर्वविद्धैव कर्तव्या प्रतिपत् सर्वदा बुधैः।।
निष्कर्ष यही है कि 26 मार्च को ही वसन्तोत्सव (रंग वाली होली, धुलंडी) मनाना चाहिए।कुछ लोगों का कहना है कि होलिका( प्रह्लाद को जलाने के लिये गोद में रखकर बैठी हिरण्यकशिपु की बहन होलिका राक्षसी) जल गयी, उसके बाद अगले दिन होली मनाने में क्या समस्या है? इस सन्दर्भ में यही निवेदन है कि अपने तर्क के आधार पर शास्त्रीय वचनों का उल्लंघन कभी भी मान्य नहीं हो सकता। होली के लिए शास्त्रों में स्पष्ट विधान किया गया है,तदनुसार ही मनाना चाहिए। वैसे आप उत्सव जब चाहें मनायें, पर रंग वाली होली , धुलंडी शास्त्र सम्मत (वसन्तोत्सव) 26 मार्च को ही है।