अंग्रेजों का शासन और आजादी का भारत देखने वाली बीकानेर राजघराने की राजमाता सुशीला कुमारी की देह पंचतत्व में विलीन…देखें वीडियो
आधा झुका ध्वज, पर्यटकों के लिए दो दिन जूनागढ़ बंद, अंतिम विदाई में उमड़ा बीकानेर
बीकानेर। पूर्व राजामाता सुशीला कुमारी ने लालगढ़ पैलेस स्थित अपने निवास पर शनिवार को तड़के तीन बजे अपने प्राण त्याग दिए। वे काफी समय से अस्वस्थ थीं तथा आमजन से मिलना-जुलना भी बंद कर दिया था। रविवार दोपहर करीब 12 बजे उनकी अंतिम यात्रा शाही लवाजमे के साथ निकाली गई।
देवीकुंड सागर में राजपरिवार के पैतृक श्मशान गृह में अंतिम संस्कार हुआ। राजमाता सुशीला कुमारी के निधन पर जूनागढ़ किले के मुख्य द्वार पर लहरा रहे बीकानेर रियासतकालीन ध्वज को आधा झुका दिया गया तथा दो दिन के लिए जूनागढ़ किले को पर्यटकों के लिए बंद कर दिया गया। बीकानेर की पूर्व राजमाता सुशीला कुमारी की अंतिम विदाई में पुत्री राज्यश्री कुमारी, पौत्री सिद्धि कुमारी, महिमा कुमारी उपस्थित रहीं। इसी क्रम में प्रतिपक्ष उप नेता राजेन्द्र राठौड़, शिक्षा मंत्री डॉ. बीडी कल्ला, ऊर्जा मंत्री भंवरसिंह भाटी, विधायक बिहारी विश्नोई, आईजी ओमप्रकाश, बीएसएफ डीआईजी पुष्पेन्द्र सिंह राठौड़, एसपी तेजस्वनी गौतम ने पार्थिव देह पर श्रद्धा सुमन अर्पित किए।
राजमाता सुशीला कुमारी गौरवमयी इतिहास
डूंगरपुर राजघराने में जन्मी बीकानेर की पूर्व राजमाता सुशीला कुमारी के निधन के साथ ही एक और गौरवमयी इतिहास का पटाक्षेप हो गया। धर्म परायण सुशीला कुमारी राजस्थान विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष महारावल लक्ष्मण सिंह की सुपुत्री और क्रिकेटर राज सिंह डूंगरपुर की सबसे बड़ी बहन थीं। सुशीला कुमारी राजस्थानी, गुजराती व अंग्रेजी की जानकार थी लेकिन राजस्थानी भाषा की हिमायती थीं और अक्सर अपनी भाषा में ही संवाद करती थीं। रियासतकाल में 79 साल पहले जूनागढ़ की जनाना ड्योढ़ी में दुल्हन के रूप में प्रवेश करने वाली सुशीला कुमारी की बीकानेर के राजघराने के करणी सिंह से शादी होने के बाद राजघराने की सदस्या बनीं थी। पूर्व सांसद करणी सिंह के निधन के बाद वे राजमाता के रूप में नजर आईं। राज परिवार में जन्मीं सुशीला कुमारी 1944 में बीकानेर सियासत में बहू बनकर आई।
जब देश में अंग्रेजी हुकुमत थी और 1947 में आजादी के बाद राजतंत्र की परम्परा भी निभाई। आजादी से पहले व आजादी के बाद दोनों शासन देखे। आपको बता दें वर्ष 1950 में महाराजा सार्दुल सिंह के पुत्र राजकुमार करणी सिंह का राज्याभिषेक किया गया था। उसी समय सुशीला कुमारी को महारानी का सम्मान मिला। साल 1971 में जब प्रिवी पर्स जैसी व्यवस्था समाप्त हो गई। तब तक वो महारानी रहीं। छह सितंबर 1988 को महाराजा करणी सिंह के निधन के बाद से राजपरिवार की सारी व्यवस्था सुशीला कुमारी ही संभालती रहीं। सुशीला कुमारी का जन्म 1929 में हुआ था। सुशीला कुमारी की पोती सिद्धि कुमारी बीकानेर पूर्व विधानसभा से पिछले तीन बार से लगातार विधायक हैं।
प्रदेश की शान बना 1944 में हुआ विवाह
डूंगरपुर में 1944 में हुआ राजकुमारी सुशीला कुमारी का विवाह समारोह पूरे देश और विदेश में भी चर्चित रहा। उनके चचेरे भाई समर सिंह डूंगरपुर ने अपनी पुस्तक डूंगरपुर ए ग्लोरियस सेंचुरी में लिखा है कि उस विवाह समारोह में देश के बड़े राजा-महाराजा और विदेशी मेहमानों ने भी बड़ी संख्या में भाग लिया था। सुशीला कुमारी की बारात में बीकानेर स्टेट का स्टेट प्लेन आया था और हवाई जहाज को उतारने के लिए उदय विलास पैलेस के पास नवलखा में विशेष हवाई पट्टी बनाई गई थी। बीकानेर की महारानी बन जाने के बाद भी सुशीला कुमारी का अपने गृह नगर डूंगरपुर और अपने माता- पिता और भाई-बहनों से गहरा लगाव था। उन्होंने अपने भाई महिपाल सिंह का विवाह भी आगे बढ़ कर धूमधाम से बीकानेर राजघराने में ही कराया। वे धर्म अनुरागी और उच्च संस्कारों, शिष्टाचार से युक्त तथा पारम्परिक कला संस्कृति की प्रबल समर्थक और पोषक थीं।
सामाजिक जिम्मेदारियों का किया बखूबी निर्वहन
सुशीला कुमारी की देश-विदेश के मामलों में भी गहरी रुचि रही। वे राजाओं के प्रिवीपर्स रहने तक नई दिल्ली में इंडिया गेट के पास बीकानेर हाउस में रहती थीं और बाद में पृथ्वीराज रोड स्थित अपने निजी आवास में शिफ्ट हुईं। ढलती उम्र के साथ वे बीकानेर में रहने लगीं। खेलों के प्रति भी उनकी गहरी रुचि रही। सामाजिक कल्याण के कार्यों के लिए हर सम्भव मदद के लिए तत्पर रहती थीं। अस्वस्थता के बावजूद वे सामाजिक जिम्मेदारियों का निर्वहन बखूबी करतीं थीं। बीकानेर के जूनागढ़ को अंतरराष्ट्रीय ख्याति दिलाने में भी उनका अमूल्य योगदान रहा।
दान-पुण्य व शिक्षा के प्रति रहीं सजग
राजमाता सुशीला कुमारी अपने जीवन में सरल, मृदुभाषी और सेवाभावी रहीं। धर्म-कर्म, दान-पुण्य व लोकहितार्थ कार्यों के साथ ही वें अनुशासन प्रिय रहीं। बालिका शिक्षा व खेलों पर अधिक जोर दिया तथा मेधावी बालिकाओं को आर्थिक सहयोग देना उनकी विशेषता रही।