अकाल मृत्यु से भी बचाता है यह दान
देव उठनी एकादशी के दिन तुलसी विवाह होता है और उसके बाद कार्तिक पूर्णिमा के दिन देव दिवाली मनाई जाती है, परंतु कई लोग देव उठनी एकादशी के दिन ही दिवाली मना लेते हैं। चूंकि 26 नवंबर रविवार की रात को ही पूर्णिमा रहेगी इसलिए कई विद्वानों ने 26 तारीख को ही देव दिवाली मनाए जाने की सलाह दी है जबकि कई विद्वान उदयातिथि के मान से 27 नवंबर सोमवार को देव दिवाली मनाए जाने की सलाह दे रहे हैं। आखिर कब है देव दिवाली?
उदयातिथि के मान से 27 नवंबर सोमवार 2023 को देव दिवाली मनाई जाएगी। वाराणसी यानी काशी में इसी दिन मनाई जाएगी देव दिवाली। इस बार 27 नबंबर 2023 सोमवार के दिन देव दिवाली रहेगी। इन दिन नदी के तट पर विशेष पूजा की जाती है और आटे के दीप बहाए जाते हैं।
दीपक का दान करना या दीप को जलाकर उसे उचित स्थान पर रखना दीपदान कहलाता है। किसी दीपक को जलाकर देव स्थान पर रखकर आना या उन्हें नदी में प्रवाहित करना दीपदान कहलाता है। यह प्रभु के समक्ष निवेदन प्रकाट करने का एक तरीका होता है। देवमंदिर में करते हैं दीपदान। विद्वान ब्राह्मण के घर में करते हैं दीपदान, नदी के किनारे या नदी में करते हैं दीपदान। दुर्गम स्थान अथवा भूमि (धान के उपर) पर करते हैं दीपदान।
किसी मिट्टी के दिये में तेल डालकर उससे मंदिर में ले जाकर जलाकर उसे वहां पर रख आए। दीपों की संख्या और बत्तियां खास समयानुसार और मनोकामना अनुसार तय होती है। आटे के छोटेसे दीपक बनाकर उसमें थोड़ासा तेल डालकर पतलीसी रुई की बत्ती जलाकर उसे पीपल या बढ़ के पत्ते पर रखकर नदी में प्रवाहित किया जाता है। देव मंदिर में दीपक को सीधा भूमि पर नहीं रखते हैं। उसे सप्तधान या चावल के उपर ही रखते हैं। भूमि पर रखने से भूमि को आघात लगता है।
अकाल मृत्यु से बचने के लिए करते हैं दीपदान। अपने मृतकों की सद्गति के लिए करते हैं दीपदान। लक्ष्मी माता और भगवान विष्णु को प्रसन्न कर उनकी कृपा हेतु करते हैं दीपदान। यम, शनि, राहु और केतु के बुरे प्रभाव से बचने के लिए करते हैं दीपदान। सभी तरह के अला-बला, गृहकलह और संकटों से बचने के लिए करते हैं दीपदान। जीवन से अंधकार मिटे और उजाला आए इसीलिए करते हैं दीपदान। मोक्ष प्राप्ति के लिए करते हैं दीपदान। किसी भी तरह की पूजा या मांगलिक कार्य की सफलता हेतु करते हैं दीपदान। घर में धन समृद्धि बनी रहे इसीलिए भी कहते हैं दीपदान। कार्तिक माह में भगवान विष्णु या उनके अवतारों के समक्ष दीपदान करने से समस्त यज्ञों, तीर्थों और दानों का फल प्राप्त होता है।