नियम तोडऩे पर साधु-संतों को मिलती है सजाएं
प्रयागराज महाकुंभ में लाखों साधु संतों का जमावड़ा लगता है। ये साधु संत विभिन्न अखाड़ों से आते हैं और इन अखाड़ों में एक अनुशासित वातावरण बनाए रखने के लिए कई सख्त नियम होते हैं। खाड़ी में साधुओं की अपनी नियमावली और न्याय व्यवस्था होती है। नियमों को तोडऩे पर साधुओं को कड़ी सजा दी जाती है। नियमों को तोडऩे पर साधुओं को गोलालाठी से लेकर अन्य सजाएं दी जाती हैं। जानिए महाकुंभ के अखाड़ों में चलने वाली न्याय व्यवस्था के बारे में। महाकुंभ में बने किसी भी अखाड़े के शिविर में कोतवाल होते हैं। ये कोतवाल अखाड़े में अनुशासन बनाए रखने के लिए जिम्मेदार होते हैं। उनके पास एक चांदी की मुठिया लगी एक छड़ी होती है, इसीलिए इन्हें छड़ीदार भी कहा जाता है।
गोलालाठी की सजा– अनुशासनहीनता या अखाड़े के नियम तोडऩे पर साधुओं को गोलालाठी की सजा दी जाती है। इसमें अनुशासनहीन साधु का हाथ-पैर बांधकर पिटाई की जाती है।
गंगा में 108 डुबकी: नियम तोडऩे वालों को कोतवाल गंगा में 108 डुबकी लगाने के लिए बोलते हैं।
गुरु कुटिया की सेवा: नियम तोडऩे वाले साधु को गुरु कुटिया की सेवा करनी पड़ती है।
रसोई की चाकरी: रसोई में काम करना भी एक तरह की सजा होती है।
मुर्गा बनना: साधु को मुर्गे की तरह घूमना होता है।
कपड़े उतारकर खड़े रहना: साधु को कपड़े उतारकर खुले आसमान के नीचे खड़ा रहना पड़ता है।
महाकुंभ क्षेत्र में जैसे ही अखाड़े की धर्म ध्वजा फहरती है, अखाड़े में जाजिम न्याय व्यवस्था लागू हो जाती है। अखाड़े की धर्म ध्वजा जिन चार तनियों पर टिकी होती है, उसे धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष का प्रतीक माना जाता है। इन्हीं तनियों के नीचे जाजिम (दरी) बिछी होती है, इस पर बैठकर अखाड़े की न्याय व्यवस्था संचालित होती है इसलिए इसे जाजिम न्याय व्यवस्था कहते हैं।