कब है निर्जला एकादशी, क्या करें इस दिन… पढ़ें पूरी जानकारी
बीकानेर। ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को निर्जला एकादशी कहते हैं। इस बार 18 जून को 2024 को निर्जला एकादशी का व्रत रखा जाएगा। पं. गिरधारी सूरा पुरोहित ने बताय कि पद्मपुराण में निर्जला एकादशी व्रत द्वारा मनोरथ सिद्ध होने की बात कही गई है। इस एकादशी के व्रत को विधिपूर्वक करने से सभी एकादशियों के व्रत का फल मिलता है। इस बार 17 व 18 जून दो दिन एकादशी है, स्पष्ट है-यहां एकादशी की वृद्धि है। एकादशी की वृद्धि होने पर स्मात्र्त एवम् वैष्णव-दोनों सम्प्रदायों के लोग षष्टिघट्यात्मक एकादशी को छोड़, केवल द्वादशीयुता एकादशी के दिन व्रत करते हैं।
इस बारे में ‘नारद’ का यह वचन देखिए-
सम्पूर्णैकादशी यत्र प्रभाते पुनरेव सा।
सर्वैरेवोत्तरा कार्या परतो द्वादशी यदि।।
उपरोक्त इस नियमानुसार इस वर्ष (सं. 2081 वि. में) यह निर्जला एकादशी व्रत 18 जून, 2024 ई. को (द्वादशीयुता एकादशी के दिन) लिखा है, जो कि सर्वथा शास्त्रशुद्ध है।
इनका करें दान
जल भरी मटकी मंदिर अथवा सार्वजनिक स्थान पर रखवाएं। गौशाला, मंदिर व जरुरतमंद को पंखे-कूलर का दान करें। छतरी, जूता-चप्पल, नमक, तिल, अनाज, चीनी व मिष्ठान का दान कर सकते हैं।
ये 3 शुभ योग
शिव योग : रात 9 बजकर 39 मिनट तक शिवयोग रहेगा।
सिद्ध योग : शिव योग के बाद सिद्ध योग लग जाएगा।
त्रिपुष्कर योग : दोपहर 3 बजकर 56 मिनट से अगले दिन सुबह 5 बजकर 24 मिनट तक त्रिपुष्कर योग रहेगा।
तामसिक भोजन व नशे से रहें दूर, ब्रह्मचर्य का करें पालन
चावल नहीं खाने चाहिए तथा नमक का भी सेवन नहीं करना चाहिए। सात्विक फलाहार ही खाना चाहिए। इस दिन मसूर की दाल, मूली, बैंगन, प्याज, लहसुन, शलजम, गोभी और सेम का सेवन भी नहीं करना चाहिए। निर्जला एकादशी का व्रत कर रहे हैं तो व्रत से एक दिन पहले से ही तामसिक, मांसाहारी भोजन का सेवन न करें, साथ ही मदिरा सहित सभी प्रकार के नशे से दूर रहें। इस दिन भूलकर भी स्त्री संग प्रसंग नहीं करना चाहिए। मनसा, वाचा और कर्मणा ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए। एकादशी के दिन तुलसी को जल अर्पित नहीं करना चाहिए और न ही उसे छूना चाहिए क्योंकि तुलसी माता इस दिन उपवास में रहती हैं। व्रत से एक रात पहले भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी का अराधना करें। एकादशी के दिन पान नहीं खाना चाहिए क्योंकि पान खाने से मन में रजोगुण की प्रवृत्ति बढ़ती है। इस दिन झाडू और पोछा नहीं लगाना चाहिए क्योंकि चींटी आदि सूक्ष्म जीवों की हत्या का दोष लगता है।
हिन्दू धर्म शास्त्रों के अनुसार निर्जला एकादशी सबसे कठिन व्रतों में से एक माना जाता है, क्योंकि इस व्रत में जल और भोजन दोनों का ही त्याग होता है। मान्यतानुसार इसे भीमसेनी एकादशी भी कहते हैं। इस दिन पानी नहीं पीना चाहिए, इसके उलट इस दिन जल तथा अन्य चीजों का दान करने का विशेष महत्व कहा गया है। इस दिन भगवान श्री विष्णु की पूरे विधि-विधान से पूजा करने तथा अपने सामर्थ्य के अनुसार दान सामग्री करने से धन-धान्य, चल-अचल संपत्ति, सफलता, यश, वैभव, कीर्ति, और समस्त सुख की प्राप्ति का वरदान प्राप्त होता है।