वसंत पंचमी : माँ सरस्वती का करें पूजन, ज्ञान के खुलेंगे द्वार
बीकानेर। वसंत पंचमी यानि विद्या कला और संगीत की देवी सरस्वती की आराधना का दिन है। वसंत पंचमी पर हर साधक ना सिर्फ देवी की आराधना करता है बल्कि यह दिन कई मायनों में हर कलाकार के लिए खास होता है। कलाकार अपने वाद्य यंत्रों की पूजा अर्चना करते हैं तो कहीं साधकों द्वारा पहले से ज्यादा अभ्यास और समर्पण के प्रण लिए जाते हैं। ज्योतिष में पांचवी राशि के अधिष्ठाता भगवान सूर्यनारायण होते हैं। इसलिए वसंत पंचमी अज्ञान का नाश करके प्रकाश की ओर ले जाती है और सभी कार्य इस दिन शुभ होते हैं। वसंत पंचमी के दिन ज्ञान की देवी मां सरस्वती का पूजन विशेष रूप से किया जाता है। जिन विद्यार्थियों का मन पढ़ाई में नहीं लगता है, वे यदि मां सरस्वती का नित्य पूजन करें तो उन्हें अतिशीघ्र लाभ होता है। विद्यार्थी यदि नीचे लिखी स्तुति का पाठ मां सरस्वती के सामने करे तो उसकी स्मरण शक्ति बढ़ती है तथा सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। यह स्तुति माता सरस्वती को बहुत प्रिय है।
सरस्वती स्तुति
या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता,
या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना।
या ब्रह्माच्युतशंकरप्रभृतिभिर्देवै: सदा वन्दिता,
सा मां पातु सरस्वती भगवती नि:शेषजाड्यापहा ।।
शुक्लां ब्रह्मविचारसारपरमाद्यां जगद्व्यापिनीं
वीणा-पुस्तक-धारिणीमभयदां जाड्यांधकारपहाम्।
हस्ते स्फाटिकमालिकां विदधतीं पद्मासने संस्थितां
वन्दे तां परमेश्वरीं भगवतीं बुद्धिप्रदां शारदाम्।।

बीकानेर के जाने-माने ज्योतिर्विद पंडित गिरधारी सूरा (पुरोहित) ने बताया कि सूर्य के कुंभ राशि में प्रवेश के साथ ही रति-काम महोत्सव आरंभ हो जाता है। यह वही अवधि है, जिसमें पेड़-पौधे तक अपनी पुरानी पत्तियों को त्यागकर नई कोपलों से आच्छादित दिखाई देते हैं। समूचा वातावरण पुष्पों की सुगंध और भौंरों की गूंज से भरा होता है। मधुमक्खियों की टोली पराग से शहद लेती दिखाई देती है, इसलिए इस माह को मधुमास भी कहा जाता है। प्रकृति काममय हो जाती है। बसंत के इस मौसम पर ग्रहों में सर्वाधिक विद्वान ‘शुक्रÓ का प्रभाव रहता है। शुक्र भी काम और सौंदर्य के कारक हैं, इसलिए रति-काम महोत्सव की यह अवधि कामो-द्दीपक होती है। अधिकतर महिलाएं इन्हीं दिनों गर्भधारण करती हैं। जन्मकुण्डली का पंचम भाव-विद्या का नैसर्गिक भाव है। इसी भाव की ग्रह-स्थितियों पर व्यक्ति का अध्ययन निर्भर करता है। यह भाव दूषित या पापाक्रांत हो, तो व्यक्ति की शिक्षा अधूरी रह जाती है। इस भाव से प्रभावित लोग मां सरस्वती के प्राकट्य पर्व माघ शुक्ल पंचमी (बसंत पंचमी) पर उनकी पूजा-अर्चना कर इच्छित क़ामयाबी हासिल कर सकते हैं। इसके लिए माता का ध्यान कर पढ़ाई करें, उसके बाद गणेश नमन और फिर मन्त्र जाप करें।
इसके अलावा संक्षिप्त विधि का सहारा भी लिया जा सकता है। हर राशि के छात्र अपनी राशि के शुभ पुष्पों से मां महासरस्वती की साधना कर सकते हैं। मेष और वृश्चिक राशि के छात्र लाल पुष्प विशेषत: गुड़हल, लाल कनेर, लाल गैंदे आदि से आराधना करके लाभ उठाएं। वृष और तुला राशि वाले श्वेत पुष्पों तथा मिथुन और कन्या राशि वाले छात्र कमल पुष्पों से आराधना कर सकते हैं। कर्क राशि वाले श्वेत कमल या अन्य श्वेत पुष्प से, जबकि सिंह राशि के लोग जवाकुसुम (लाल गुड़हल) से आराधना करके लाभ पा सकते हैं। धनु और मीन के लोग पीले पुष्प तथा मकर और कुंभ राशि के लोग नीले पुष्पों से मां सरस्वती की आराधना कर सकते हैं। अगर आप मंदिर जा रहे हैं, तो पहले गं गणपतये नम: मन्त्र का जाप करें। उसके बाद माता सरस्वती के इस मन्त्र ऐं ह्रीं क्लीं महासरस्वती देव्यै नम: का जाप करके आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं।

इस मन्त्र के जाप से जन्मकुण्डली के लग्न (प्रथम भाव), पंचम (विद्या) और नवम (भाग्य) भाव के दोष भी समाप्त हो जाते हैं। इन तीनों भावों (त्रिकोण) पर श्री महाकाली, श्री महासरस्वती और श्री महालक्ष्मी का अधिपत्य माना जाता है। मां सरस्वती की कृपा से ही विद्या, बुद्धि, वाणी और ज्ञान की प्राप्ति होती है। देवी कृपा से ही कवि कालिदास ने यश और ख्याति अर्जित की थी। वाल्मीकि, वसिष्ठ, विश्वामित्र, शौनक और व्यास जैसे महान ऋषि देवी-साधना से ही कृतार्थ हुए थे। माता को शुक्लवर्ण वाली, संपूर्ण चराचर जगत् में व्याप्त, आदिशक्ति, परब्रह्मा का विचार व चिंतन के परम उत्कर्ष को धारण करने वाली कहा गया है। माता सभी भयों से भयदान देने वाली है, अज्ञान के अंधेरे को मिटाने वाली, हाथों में वीणा, पुस्तक और स्फटिक की माला धारण करने वाली और पद्मासन पर विराजमान और बुद्धि प्रदान करने वाली, मां सर्वोच्च एश्वर्य से अलंकृत, भगवती शारदा की मैं वंदना करता हंू।